बेटे के घर में मां बाप मेहमान क्यों नही बनते/ Bete ke ghar mein man baap mehman kyon nahi bante ?

बेटे के घर में मां बाप मेहमान क्यों नही बनते/ Bete ke ghar mein man baap mehman kyon nahi bante ?

संयुक्त परिवार खत्म होने से यह एक आम समस्या बन गई है क्योंकि बच्चे अधिक कमाने के लालसा में मां बाप से दूर हो जाते हैं,फिर वह एक शहर से दूर हो या अपने देश से ऐसे में बच्चे तो अपने कामकाज में अपना जीवन व्यतीत कर लेते हैं लेकिन पेरेंट्स अपनी जिम्मेदारियों को खत्म करने के बाद अपने जीवन में उन्हें अकेलापन महसूस होता है। जिसके कारण वह कभी-कभी अपने बच्चों से मिलना चाहते हैं, लेकिन कुछ कारणवश यह इतना आसान नहीं हो पाता। उसके बहुत सारे कारण हो जाते हैं, कुछ पेरेंट्स बच्चों के घर जाना पसंद भी करते हैं परंतु कुछ बच्चों के घर में जाना पसंद नहीं करते और उसके पास भी उनके पुख्ता कारण भी होते हैं।

उनको अपने बच्चे के घर जाकर खुद को मेहमान जैसा महसूस करने में कभी अच्छा तो कभी बुरा भी लगता है।आज ऐसे ही कुछ कारणों को आपके सामने रखती हूं ,कुछ इसके पक्ष में भी होंगे और कुछ इसके विपक्ष में भी हो सकते हैं। मैं दोनों को अपने तर्क से सामने रखने की कोशिश करती हूं। इसे पहले पक्ष में और फिर विपक्ष में स्पष्ट करती हूं।

बेटे के घर में मां बाप मेहमान :_मेहमान नाम सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है आप अपने घर में मेहमान हो या किसी दूसरे के घर में अपनों के घर में हो या अपने बच्चों के घर में मेहमान बन ना सको अच्छा लगता है । मेहमान बना अच्छा क्यों ना लगे हमें कुछ काम करना नहीं होता तो बैठे बैठे खाने को मिले तुम मुझे ही क्या?
लेकिन कभी सोचा है कि हम अपनी शादीशुदा बेटी के घर या शादीशुदा बेटे के घर पर मेहमान बनने का एहसास क्या होता है। और अपने बच्चों के घर में आखिर हम मेहमान बने ही क्यों या जब कभी बनते हैं तो पेरेंट्स की फीलिंग से फीलिंग क्या होती है। मैं हूं और उनकी तू नहीं लेकिन अपनी फिलिंग्स के बारे में आपको बताना चाहूंगी।

1:_सम्मान की आशा होती :_ मां मां बाप अपने बच्चों की शादी करते हैं तो वह अपनी आधी जिंदगी दौड़ _भाग, जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने की दौड़ में दौड़ में थका हुआ महसूस करते हैं और उस समय वह अपने बच्चों के पास कुछ समय काटना चाहते हैं उस समय उन्हें केवल अपने सम्मान की आवश्कता होती हैं। वह बस इतना ही चाहते हैं कि मेरे बच्चे अब इस उम्र में उनका सम्मान करें। यह सम्मान उन्हें खुशी पहुंचाता है।

2:_घूमना तो एक बहाना :_कभी-कभी मां-बाप अपने बेटे के घर घूमने जाते हैं,ताकि उनसे मिल सकें और अपने बेटे के नए नवेले जीवन को देख सकें। बहुत सारी चीजें जो उन्होंने अब तक नहीं सीखी होती हैं ।उसे बताने के लिए भी मां बाप अपने बच्चों के पास जाकर समय काटना चाहते हैं। 

3:_सब के साथ रहने का मौका : बेटी या बेटे के घर में मां-बाप अपने बच्चों और पोतें पोतियों से मिलते हैं जिससे उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिलता है। अपने बच्चों को तो शादी कर चुके होते हैं और अब उनकी अपनी नौकरी और व्यापार का भी काम समाप्त हो चुका होता है लगभग उनके पास अब कोई अपना काम नहीं होता क्योंकि बच्चों की शादी हो चुकी होती है तो वह अपने घर में अकेले हो चुके होते हैं उन्हें बच्चों के घर जाकर सबके साथ रहने का मौका मिल जाता है जो उन्हें इस उम्र में सुख की अनुभूति देता है।

4:_पेरेंट्स बच्चों के सहयोगी : शादीशुदा बेटे के घर में मां-बाप उन्हें उनके सभी रोजमर्रा के कामों में सहयोग देते हैं। माना कि वो मुख्य काम या यूं कहें कि बड़े-बड़े काम तो नहीं कर सकते लेकिन एक सहयोगी बनकर बहुत से काम घर के निपटा सकते हैं और वह यही करना चाहता है। यदि बच्चों और पेरेंट्स में मतभेद नहीं है तो यह सहयोग भर को मजबूत बनाता है और पेरेंट्स को कामकाजी।

5:_देखभाल वा उपचार: कई बार मां-बाप को उपचार की आवश्यकता होती है जो वह खुद लापरवाही के चलते अपना उचित उपचार नहीं कराते ऐसे में बच्चों के साथ रहने पर लापरवाही नहीं हो पाती और बच्चे अपने माता-पिता के उचित देखभाल और उपचार का प्रबंध करते हैं यह भी मां बाप को सुख हो जाता है।

6:_खुशी का एहसास:_ बेटे के घर में मां-बाप का जाना उन्हें खुशी देता है और उन्हें अपने बच्चे की सफलता और खुशहाली का एहसास होता है। समय परिवर्तन की कारण संयुक्त परिवार खत्म हो गए । मां बाप अपने बच्चों को समाज में आगे बढ़ता हुआ नहीं देख पाते हैं।इस कमी को पूरा करने के लिए भी वह अपने बच्चों के घर पर कुछ दिनों के लिए मेहमान बनकर जाते हैं,और उनकी सफलता देखकर उन्हें अपने बच्चों पर गर्व होता है ,और तब अपने सारे पुराने गम को भूल जाते है।

7:_अकेले पन को दूर करने:_ मां-बाप अपने बच्चों के घर में जाकर उनके जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करते हैं। माना कि व्हाट्सएप मोबाइल स्काइप हमारे आधुनिक जीवन में दूरी को कम करने का एक बहुत अच्छा साधन मिल गया है लेकिन इसके विपरीत भी बहुत सी बातें व्हाट्सएप_ स्काइप पर नहीं हो पाती। ऐसे ही मुद्दों पर बात करने के लिए अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों के घर मेहमान बन कर चले जाते हैं जैसे शादी , सगाई जन्मदिन गोद भराई , मुंडन, गृह प्रवेश इत्यादि से पेरेंट्स और बच्चों दोनों के अकेलेपन दूर होने का बहाना मिल जाता है।

8:_ परिवार का एकता बनीं रहती :_ मां-बाप का बच्चों के घर जाने से परिवार में एकता बढ़ती है और उनके बच्चों को यह भी अनुभव मिलता है कि उनके परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के साथ समझदारी और प्यार से रह सकते हैं।
इन सभी कारणों के चलते शादीशुदा बेटे के घर में मां-बाप मेहमान बनना पसंद करते हैं। घर परिवार में जितना ज्यादा एक दूसरे से सब मिलते हैं।परिवार में उतना ही ज्यादा प्यार बढ़ता है
इसके विपरीत जरूरी नहीं कि सबके परिवार एक जैसे ही हो खुश परिवार मनमुटाव के शिकार भी होते हैं और ऐसे में शादीशुदा बेटे के घर मां-बाप मेहमान बनना पसंद नहीं पड़ते उनके मुख्य कारण भी हम सब जानना चाहेंगे आज मैं आपको ऐसे 8 कारणों से परिचय कराती हूं।

शादीशुदा बेटे के घर में मां बाप मेहमान बनना क्यों नही चाहते?

शादीशुदा बेटे के घर में मां-बाप मेहमान बनने की अनेक कारण हो सकते हैं। हालांकि, कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

हस्तक्षेप:_ अभिवावक अपने बच्चे की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप करना नहीं चाहते। वे यह सोच सकते हैं कि उनके बच्चे की शादीशुदा जिंदगी में बच्चे अब अकेले नहीं हैं उनके साथ उनका लाइफ पार्टनर भी साथ है और दोनों समझदार होने के नाते किसी भी परिस्थिति को हैंडल कर सकते है, इस कारण वह अपने बच्चों की जाति जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। उनके पास अपनी निजी जिंदगी होती है और उन्हें अपनी पत्नी या पति के साथ समय बिताने का हक होता है।

रहन-सहन परिवर्तन:_ कुछ बड़े परिवारों को छोड़कर यह बहुत ही सामान्य सी बात है की माता पिता और बच्चों के बीच रहन सहन का परिवर्तन होता ही है। इसके चलते कुछ माता-पिता अपने बच्चों के घर में जाने से गंभीरता से इनकार करते हैं। केवल रहन-सहन ही नहीं खानपान पहनावा सब कुछ परिवर्तित होता है और बुजुर्ग दंपत्ति अपने मैं परिवर्तन न कर पाने के कारण उन्हें अपने बच्चों के घर में रहने में असहजता महसूस होती है।

परिवारों में मनमुटाव:_ कुछ माता-पिता को उनके बच्चे की पत्नी या पति से कोई असंतोष हो सकता है, और उनके घर में जाने से वे उनसे भिन्नता का सामना करना पड़ता हैं। बेटे बहू अकेले रह रहे हो या अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ तब दोनों ही स्थिति में यदि परिवारों के बीच मनमुटाव होता है,तब ऐसे में माता पिता बेटे बहू के घर जाने में हिचकीचाहते हैं।

सफर और दूरी की समस्या:_ बच्चे जब देश विदेश में जाकर दूरदराज रहने लगते हैं तब माता-पिता बुजुर्ग होने के कारण सफर करने में असहज महसूस करते हैं। काफी देर तक ट्रेन या प्लेन में कई घंटों का सफर करना उन्हें uncomfortable बनाता है,और इस कारण वह अपने बच्चों के घर जाने के लिए या घर में मेहमान बनने के लिए अनुचित महसूस कर सकते हैं।

चिकित्सा:_कई बार वह देश विदेश अपने बच्चों के साथ रहने के लिए तैयार भी हो जाए तो भी पेरेंट्स की मेडिकल लाइफ उन्हें अपने बच्चों के पास जाने से रोकती है। उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते कोई ना कोई रेगुलर बीमारी हमारे शरीर को घेर लेती है ऐसे में मेडिकल सहयोग लेना पड़ता है। हमारे पेरेंट्स जहां पर अपना इलाज सुविधाजनक करा रहे होते हैं, वह वहीं से ही संतुष्ट होते हैं। दूसरे शहर या दूसरे देश में जाकर उन्हें अपनी शारीरिक और मानसिक परिवर्तित स्थिति के कारण असहजता होती है।

अंततः हमारे भारतीय पेरेंट्स अपने बच्चों के घर मेहमान बनना पसंद नहीं करते हैं। बच्चों को वह खुद अपने घर बुलाकर बच्चों की खुशियों में शामिल होने में उन्हें ज्यादा पसंद करते हैं ।इससे बच्चे अपने परिवार में आ कर खुश हो लेते हैं और पैरंट्स भी अपने पोतों पोतियों से मिलकर खुश हो लेते हैं।

उपरोक्त सभी कारण शादीशुदा बेटे के घर में मां-बाप मेहमान बनने से अपने को रोक सकते हैं। हालांकि, अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों की शादीशुदा जिंदगी को समर्थन करते हैं और उन्हें खुश देखना चाहते हैं।

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